मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

हिलाल या हलाल

यरवदा के जेल में महादेव भाई देसाई से एक मार्च १९३३ को तेल मलवाते समय बापू बोले, "आज चन्द्रमा सुन्दर दीखता है | इसे तो हिलाल हि कहते होंगे न ?" इस पर महादेव बोले, "हिलाल तो दोयज के चन्द्रमा का नाम है न ?" हिलाले ईद" ( ईद का चंद ) कहा जाता है |"  इस पर बापू ने पूछा, "ईद के हिलाल के सामान तीज का हिलाल नहीं कह सकते ?"

        इस पर बल्लभभाई बोले "हलाल का मतलब तो यही नहीं है न, कि एक हि झटके में  दो कर डालें ? और सिक्खों को झटके का गोश्त चाहिए न ?"

         बापू और महादेव भाई खिलखिला कर हंस पड़े |


        =================================================================

         एक बार जिन्ना ने अपने व्याख्यान में कहा कि "गाँधी ने क्या किया ?"

         इसके सम्बन्ध में सरदार ने उत्तर दिया "निश्चय से गांधीजी ने कुछ नहीं किया, किन्तु जिना को कुरान पढ़वा दिया |"

          चौरी चौरा काण्ड के बाद जब बारडोली में सत्याग्रह आरम्भ न करने का निश्चय किया गया तो विठ्ठल भाई बोले

          "बारडोली  थरमा पोली  |"

           इस पर सरदार बोले थर अर्थात् झाड़ कि जड़ पोली हो उसका निश्चय उसमें मसूल बजा कर दिया जावे |

           बारदोली सत्याग्रह के दिनों में कुर्की वालों से बचने के लिये पशुओं को बहुत समय तक माकन में बंद रखा गया, जिससे उनका रंग हल्का कला पद गया |

एक बार सरदार ने अपने व्याख्यान में आये हुए कुछ अंग्रेजों को सुना कर कहा |

            "हमारे यहाँ तो भैंस भी मैडम बन गईं |"

मृत्युञ्जयी सरदार पटेल

राष्ट्रनिर्माता पटेल

"आज सरदार पटेल का जन्म-दिवस है---अविस्मरणीय राष्ट्र-निर्माता का प्रेरक स्मरण दिवस ! सरदार मृत्युंजय साबित हुए हैं | जीवन में वह जितने याद नहीं आए, उससे कई गुना अधिक वह आज याद आ रहे हैं| राष्ट्रविपत्ति में लोगों की आँखों में अनायास ही सरदार की वज्रमुर्ती चित्रित हो जाती है | द्रोह और शैथिल्य की स्थितियों में वज्रबाहु सरदार आँखों की श्रद्धा में झूलने लगते हैं | संकट-काल में जिसकी याद आए , जिसकी अनुपस्थिति मन में मायूसी उत्पन्न करे, उसे मृत्युंजय न कहें तो क्या कहें ?

                    सरदार पटेल ने भारत की भाग्यालिपि अपनी लौह-कर्मठता में लिखी है | वह लिपि देश का अखण्ड-अनश्वर भूगोल बन कर उनके नेत्रित्वकौशल  का जयजयकार करती है | गांधीजी ने राष्ट्र-जागरण का जो शंख फूंका था, सरदार ने उस घोष को अपने जीवन में प्रवृति-रूप देकर राष्ट्र की विविध -मुखी शक्तियों को एक प्रबल प्रवाह में संगठित किया था | इस प्रवाह में इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य ही नहीं बह गया , देश की अकर्मण्यता और हीनताएं भी बह गई | शक्तिस्त्रोत से निकले शक्ति-प्रवाह राष्ट्र की रंगों में प्रवाहित हो कर निर्जीव-मूल्यों को फिर से लहलहाने लगे | मुक्ति के विचार-आकाश  के साथ  सरदार ने अपनी मातृभूमि को ऐसे नर-रत्न भी गढ़ कर दिए, जिन्होंने अपने प्रशासन-कौशल  से संसार को चकित कर दिया | सरदार स्वाभाव से सेनापति तो थे ही, वे अपने उसी स्वाभाव में सेनापति निर्माता भी थे | महादेव भाई उन्हें मजाक में अक्सर "नेताओं की फसल बोने वाला किसान" कहा करते थे |

                    जीवन काल में कमायी महत्ता और कीर्ति, वास्तव में परम काम्य है, किन्तु अक्षय अमर महत्ता तो वही है जो मृत्यु के बाद भी फलती फूलती रहे | पुरुषार्थियों को ही ऐसी महत्ता और कीर्ति नसीब होती है ----ऐसे पुरुषार्थियों को, जिन्होंने काल के वज्रदान्तों को अपने प्रचंड पराक्रम से तोड़ा है | सरदार पटेल इसी कोटि के पुरुष-पुंगव थे-----उनकी सिर से पैर तक की सारी देह यष्टि शौर्य के स्वर्ण से बनी थी | अग्नि परीक्षाओं में यह स्वर्ण और भी निकलता गया | कीर्ति के लिये मृत्यु सब से भयानक एवं कठोर अग्नि परीक्षा होती है | सरदार इस परीक्षा में भी खड़े उतरे हैं; मृत्यु के बाद वह अपने 'स्वर्ण ' में और भी तेजस्वी होते जा रहे हैं | आज देश उन्ही अद्वितीय 'सरदार' को श्रद्धा-भक्ति के साथ शीश नवाता है |"

साभार-----दैनिक "हिन्दुस्तान"
दिनांक-----31 अक्टूबर 1963

सरदार पटेल गाथा

सरदार पटेल विभिन्न मुद्रा में
बच्चों भारत में जन्मा था, ऐसा पुरुष महान 
लोग उसे कहते वह है, लोहे का इंसान 

वल्लभ भाई बचपन से ही, थे निर्भय स्वाधीन
कठिन समय में भी वे होते, कभी न थे नत दिन

बाधाओं से भीड़ जाते थे, बन कर अटल पहाड़
सदा किया करते थे निर्भय, खतरों से खिलवाड़

लगी हुई थी तब भारत में, मुक्ति समर की आग
गांधीजी का आवाहन सुन, देश उठा था जाग

हुए प्रभावित गांधीजी से, बढे साथ निर्द्वंद
विश्वासी थे बापू के, बढते साथ अमन्द

सचमुच था सौभाग्य देश का, था अद्भुत संयोग
वल्लभ भाई-जैसे का था गाँधी को सहयोग

छोड़ वकालत फूंका पथ-पथ, असहयोग का मन्त्र
अंग्रेजों के सफल ना होने, देते थे षड्यंत्र

रक्खेगा इतिहास बारडोली, सत्याग्रह याद 
नौकरशाही के जुल्मों की, रही न थी तादाद

इस सत्याग्रह ने पाया था, देश व्यापी विस्तार
बापू ने था उन्हें पुकारा, कह सब का सरदार

मुक्त देश था नया जोश था मिला सुभ्र वरदान
वल्लभ भाई ने भारत का, किया नवल निर्माण

किया एक ने भारत का भू-अखिल कीर्ति विस्तार
एक राष्ट्र का संयोजक था, शिल्पी कुशल अपार

सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु निश्चय करते हुए

बिखरे राज्यों को मोती का, गूँथ मनोहर हार
पूर्ण किया सदियों का सपना, धन्य-धन्य सरदार
                                 
                               * * * * * * * * * * * 

रविवार, 29 जुलाई 2012

manmohan-jardari ki sikret guptgun

पकिस्तान के प्रेजिडेंट आसिफ़ अली जरदारी साहब हाल हिन् में इंडिया आयें, और जब बोर्डर क्रोस करने  लगे तो सेक्युरिटी वालो को कहना पड़ा की.....नहीं।सरररर......,,सर ...नहीईईइ ,,,,ए....ए ए....ऐसे काँटों वाली तार के नीचे से लेटकर जाने की जरुरत नहीं है।.. आपके लिए गेट खुल रहा है।........ (हाहाहाहाहा....)

              वैसे जरदारी साब एक दिन के दौरे पर ही इण्डिया आये थे.....जिसमे उन्होंने मन्नू जी के साथ लंच किया और....इस लंच के दौरान कुछ बहुत ही इंटेरेस्टिंग  हुआ।...
                    : और जी मन्नू जी  के हाल है आपका....
                    : ओ.. मस्त है एकदम..... और आपका??
                    : मस्त है एकदम  (झूठ बोले..कांव...कांव.. कौआ काटे)
                    : तो क्या खिला रहें हैं आज आप !
                    :अं..अं..अं..(दाढ़ी खुजाते हुए)
                    : जी,, मैंने कहा क्या खिला रहे हैं आज आप।.....
(एक प्लेट पुलाव लाके)
             वेटर: सर जी, काश्मीरी पुलाव है।....
लेकिन कश्मीरी पुलाव.... नहीं !!!! छोड़ बेहन@*#$ 
         (मन्नू रीपीटिंग) : कश्मीरी पुलाव हैं जी।.कश्मीरी पुलाव ! & ओ ला...ला।.. ओ...ओ...इधर ला।..
            जरदारी: पुलाव।.... मई लूँगा।.......
               मन्नू: ओ जी ... मै लूँगा
         (दोनों छीनाझपटी करते ही)
                       :ओ जी मै  लूँगा
                       : ओये मै लूँगा।.....
                       : मै।.....नहीं मै....मै.........नहीं मै .....ओये मै  लूँगा।........ ना जी मै लूँगा।..... ओये मेरा पुलाव है मई खाऊंगा।....
     ना जी।..मै खाऊंगा .............ओये मैंने आर्डर किया है.....चल प्लेट इधर ला।.....
                       दे बेह*#@$....(बीप.....बीप...बीप)
                    .....मेरी काश्मीरी पुलाव है।....ओये और कोई असम/कश्मीर होता तो दे देता, लेकिन कश्मीरी पुलाव.... नहीं !!!! छोड़ बेहन@*#$ (बीप....बीप...बीप)  ये पुलाव नहीं दूंगा ........ नहीं दूंगा ...... नहीं दूंगा !!!! बिलकुल नहीं दूंगा.......
                     : ओजी नहीं मै गेस्ट..... मै.... ; (छान्नाक) प्लेट गिर गया छिना झपटी में।
                        सन्नाटा.........
                        सन्नाटा।..............
                       सन्नाटा.................

                  जरदारी: और कुछ है जी.................
                    मन्नू : ओ jiiiiiii ........... मैडम जी से पूछ कर बताता हूँ।...................

                                                         ************ कुछ देर बाद ********************

जरदारी : (हाथ में एक शीशी लेकर) जी।....इसे....इसे बंद कैसे करते हैं..........
मन्नू    : ही..ही.. (दाढ़ी खुजाते हुए) 
मन्नू    : ही..ही.. (दाढ़ी खुजाते हुए) ओये ये ले ढक्कन ले।.. और जोर से।... कास..आब,,,,, का...साब.. का...साब......... का...साब.........कसाब.....कसाब....कसाब....ओये..का...साब...जोर से का...साब .....का...साब....कसाब ..कसाब।........ओये ये कास यार .कास यार ...कस कस .................

                                                       ************ कुछ देर बाद ********************

मन्नू जी : (डकार.......डकार...डकार)
जरदारी : टीवी देकहें थोड़ी देर।.........
मन्नू    : (डकार.......डकार...डकार) क्या ???
जरदारी : टीवी चलाएंगे थोड़ी देर।.. प्लिज्ज्ज ....


    मन्नू: ओ चला देते हैं यार............
  ओ क्या देखना है टीवी पे।....
जरदारी : जी,,, कोई हिंदी फिलम लगाइये .......बहुत दिन से देखा नहीं है।...........
               टीवी ऑन
    ***टीवी के स्क्रीन पर****
हा.आ..आ...आ..आ...(सन्नी देओल चापाकल उकादते हुये @ ग़दर)
मन्नू : ओये हेण्डपंप...!!!!!!!!!



तो ये था मन्नू और जरदारी जी की कुछ मजेदार मोमेंट

        ******फिलहाल समाप्त********

बुधवार, 30 मई 2012

सरदार के ऐतिहासिक कार्य :- चीनी आक्रमण की भविष्यवाणी

उनका अंतिम सार्वजनिक भाषण अपने ढंग का अनूठा था यह भाषण केन्द्रीय आर्य सभा दिल्ली के तत्वावधान में ऋषि दयानंद के ६७वें निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में ९ नवम्बर १९५० को दिया गया था | सरदार का स्वभाव अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर भाषण देने का नहीं था | किन्तु अपने इस भाषण में उन्होंने तिब्बत तथा नेपाल के सम्बन्ध में चीन की प्रसरवादी नीति की आलोचना करते हुए यह सम्भावना प्रकट की थी कि चीन का आक्रमण बारात पर भी हो सकता है |


         सरदार पटेल ने अपने भाषण में कहा कि "आज तिब्बत तथा नेपाल में जो कुछ हो रहा है, उसके खतरे का मुकाबला तभी किया जा सकता है जब भारतीय जनता दज्गत भावना से ऊपर उठे | नवीन प्राप्त की हुई स्वतंत्रता की रक्षा इसी प्रकार की जा सकती है | महात्मा गाँधी तथा दयानंद के दिखलाए हुए मार्ग का अनुसरण करके ही आज की कठिन स्थिति का मुकलाबा किया जा सकता है |" उन्होंने इस बात पर बल दिया "नेपाल के आन्तरिक सरदारों ने भारत की उत्तरी सीमा पर बाह्य खतरे की सम्भावना को बढ़ाया है | अतएव भारतीयों को किसी भी क्षेत्र से आने वाली खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए |"
          
        सरदार पटेल ने तिब्बत में शांति के हस्तक्षेप की आलोचना करते हुए कहा कि "प्राचीन काल से सदा ही शांति कि उपासना करने वाले तिब्बतियों के विरुद्ध शस्त्र का प्रयोग करना अनुचित है | तिब्बत के जैसा शांति का उपासक संसार का कोई देश नहीं है |' उन्होंने यह भी कहा "चीन सरकार ने भारत के परामर्श को नही मन कि वह तिब्बत के मामले को शांतिपूर्वक तय करे | उसने तिब्बत में अपनी सेनाएं धंसा दीं और उसका कारण यह बतलाया कि वह तिब्बत में चीन विरोधी विदेशी षड्यंत्रों को समाप्त करेंगी | किन्तु यह भय निराधार है | तिब्बत में किसी बाह्य शक्ति की रूचि नहीं है  |"

          सरदार पटेल ने अपने भाषण में आगे कहा "चीन के इस कार्य का क्या परिणाम होगा, कोई इसे नहीं बतला नहीं सकता | किन्तु बल तथा शक्ति संपन्न राष्ट्र किसी मामले पर शांतिपूर्वक विचार नहीं करते |"

मंगलवार, 29 मई 2012

सरदार के ऐतिहासिक कार्य :- गोआ विषयक आकांक्षा

श्री सी. एम. श्रीनिवासन ने सरदार पटेल के जीवन चरित्र सम्बन्धी अपने ग्रन्थ में लिखा है की---

१९४८ में सरदार पटेल एक भारतीय युद्धपोत द्वारा बम्बई बंदरगाह के बहिर यात्रा कर रहे थे | जब युद्धपोत गोआ के निकट आया तो उन्होंने उसके  कमाण्डिंग अफसर से कहा की वह युद्धपोत को गोआ के समीप ले जावे, जिससे वह उसे देख सकें | कमाण्डिंग अफसर ने सरदार को तटवर्ती सामुद्रिक सीमा के नियम स्मरण कराएँ तो सरदार मुस्करा कर बोले--

       "कोई बात नहीं, बढे चलो, तनिक देखें तो सही |" कमाण्डिंग अफसर विवश हो गया और वह सरदार को प्रसन्न करने के लिए युद्धपोत को पुर्तगाल की सामुद्रिक सीमा में एक मील तक ले गया | तब सरदार पटेल ने उस अफसर से पूछा---

        "इस युद्धपोत पर तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं ?"

        "८००" कप्तान ने उत्तर दिया |

        "क्या वह गोवा पर अधिकार करने के लिये पर्याप्त है ?" सरदार ने पूछा |

        "मैं ऐसा ही समझता हूँ |" कप्तान ने निर्मिमेष दृष्टि से देखते हुए कहा |

        "अच्छा, चलो | जब तक हम यहाँ हैं गोआ पर अधिकार कर लो |" सरदार ने कहा | युद्धपोत के कमाण्डिंग अफसर ने उनपर दृष्टि जमाये हुए इस बात को दोहराने को कहा तो सरदार ने बड़ी गंभीरता से अपनी बात को दोहरा दिया |

        "श्रीमान ! इस विषय में आपको मुझे लिखित आज्ञा देनी पड़ेगी, जिससे उसे रिकार्ड में रखा जा सके |" कप्तान बोला |

          सरदार ने कुछ सोचकर उत्तर दिया "बाद में विचारने पर मई सोचता हूँ की हम वापिस चलें | तुम जानते हो पीछे क्या होगा ? जवाहरलाल इस पर आपत्ति करेगा |"

           वास्तव में ऐसे मामले पर वह अपनी इच्छानुसार कार्य कर जाते | गोआ को तो वह बहुत पहले भारतीय संघ में सम्मिलित कर लेते, यदि उनको यह विश्वास होता की उनके कार्य का समर्थन प्रधानमंत्री करेंगे |

            सरदार कहा करते थे "कार्य निश्चय से पूजन है, किन्तु हंसी जीवन है |" उनका जीवन भर कार्य इसी सिद्धान्त पर आधारित था |

शुक्रवार, 25 मई 2012

सरदार के ऐतिहासिक कार्य :-सोमनाथ का मंदिर

सरदार का हृदय धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत था | एक हिन्दू के नाते वह सोमनाथ के महत्त्व को अनुभव करते थे | उसका प्रथम मंदिर प्रथान शताब्दी में बनाया गया था | धन-संपत्ति का वहाँ इतना अधिक भंडार था की मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सदा ही उसे अपना लक्ष्य बनाया तथा उस पर कई बार आक्रमण किया | यहाँ तक की सन् १०२४ में महमूद गजनवी ने उसके तृतीय मंदिर को नष्ट किया | इसीलिए सोमनाथ का मंदिर भारत की धार्मिक भावना का प्रतीक था |

भव्य ऐतिहासिक सोमनाथ शिखर
सरदार की सोमनाथ की यात्रा :-----
  १३ नवम्बर १९४७ को सरदार पटेल ने भारत सरकार के तत्कालीन निर्माण-मंत्री श्री गाडगिल तथा जामनगर के जामसाहब के साथ सौराष्ट्र प्रदेश में सोमनाथ का दौरा किया | मंदिर की दुर्दशा देख कर उनका ह्रदय विदीर्ण हो गया और उन्होंने मंदिर का पुनर्निर्माण करने का संकल्प किया | सरदार पटेल के इस संकल्प की प्रतिक्रिया देश के कोने-कोने में हुई | धन -राशि एकत्रित  हो गई | भारत सरकार ने कन्हैयालाल माणिकलाल  मुंशी की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति नियुक्त की | सौराष्ट्र सरकार ने अपने राजप्रमुख की अध्यक्षता में एक  ट्रस्टी बोर्ड स्थापित किया, जिसके अन्य सदस्यों में श्री मुंशी तथा श्री गाडगिल भी थे |
सोमनाथ में सरदार जम्सहिब सहित उसके पुनर्निर्माण का निश्चय कर रहे हैं

           अब सोमनाथ के प्राचीन मंदिर का स्थान खोजने के लिए खुदाई की गई | भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के प्रतिनिधियों ने इस कार्य में सहायता दी | इस अन्वेषण से सोमनाथ के एक के ऊपर एक पांच प्राचीन मंदिर भूगर्व में मिले |

अटल-अविचल राष्ट्रशिरोमणि सरदार
            अंत में यह निर्णय किया गया की प्राचीन मंदिर के खंडहरों को एक नए मंदिर का निर्माण किया जाए | मूल पांचवे मंदिर के आधार पर नए मंदिर का ढांचा तैयार किया गया तथा उसे कार्य रूप में परिणत करने की व्यवस्था की गई | इस मंदिर की मुर्तिप्रतिष्ठा का समारोह ११ मई १९५१ को किया गया और उसमें राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने भी भाग लिया | इस मुर्तिप्रतिष्ठा में शास्त्रीय विधि के अनुसार सभी महाद्वीपों की मिट्टी तथा सभी महासागरों और पवित्र नदियों के जल का उपयोग किया गया | इस प्रकार सरदार पटेल के संकल्प द्वारा  भारत की एक महती राष्ट्रीय आकांक्षा की पूर्ति की गई |

(सोमनाथ का प्रथम मंदिर ईसा की प्रथम शताब्दी में बनाया गया था | महमूद गजनवी ने १०२४ में सोमनाथ के तृतीय मंदिर को नष्ट किया था | )

सरदार के हास्य विनोद :- "मुझे प्रिंसिपल बना दीजिए"

चिर विजयी मधु-मुस्कान
एक बार गांधीजी किसी कॉलेज के एक प्रिंसिपल की नियुक्ति के सम्बन्ध में विचार विनिमय कर रहे थे तो सरदार बोले :


       "आप वाहन का प्रिंसिपल मुझे बना दीजिए |",


       " वहाँ आप विद्यार्थियों को क्या पढायेंगे ?"

       "भारत के विद्यार्थियों को आज याद करने की आवयश्कता न होकर पढ़े हुए पाठ को भूल जाने की आवयश्कता है |"

        अगस्त क्रांति के सम्बन्ध में उन्होंने कहा था :


        "भूतपूर्व भारतमंत्री ने कहा था की गांधीजी की गिरफ़्तारी पर भारत में  एक कुत्ता भी नहीं भौंका और सारा कारवां निकल गया | किन्तु इस बार कुत्ता भौंक कर नहीं बैठा रहेगा, वरन काट भी खायेगा | आगामी संघर्ष में ऐसे कुत्तों के काटने के अनेक उदहारण मिलेंगे |"


        भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डा. राजेंद्र प्रसाद जब १९५० में प्रथम बार राष्ट्रपति बने तो सरदार सरदार ने उनसे विनोद करते हुए कहा --


          "आपने तो कोंग्रेस अध्यक्ष से राष्ट्रपति पड़ छीन लिया |" क्योंकि उस समय तक कोंग्रेस अध्यक्ष को ही राष्ट्रपति कहा जाता था |

बुधवार, 23 मई 2012

:- मुंशी का अवतार

२६ मई १९३२ को बापू को उर्दू कापी लिखते देखकर सरदार कहने लगे, "इसमें जी रह जायेगा तो उर्दू मुंशी का अवतार लेना पड़ेगा |"


           बापू प्रातः ९ बजे और शाम को ६ बजे प्रतिदिन सोडा और नीम्बू पिया करते थे | नीम्बू गर्मियों में महंगे हो जाते थे | इसीलिये १४ जून १९३२ को बापू ने बल्लभभाई को इमली का सुझाव दिया | क्योंकि इमली के वृक्ष जेल में भी बहुत थे | बल्लभभाई ने हंस कर उत्तर दिया----


          "इमली के पानी से हड्डियां गलब जाती है, वादी हो जाती है |" बापू ने पूछा, "तो जमनालालजी क्यों पीते हैं ?"
          
           वल्लभभाई, "जमनालालजी की हड्डियों तक पहुँचने का इमली के लिए रास्ता ही नहीं |" 



मंगलवार, 22 मई 2012

धौला गुजरी - अभूतपूर्व वीरांगना

पलवल से पूर्व दिशा में गुलावद नमक ग्राम में सन् १९४७ के ज्येष्ठ दशहरा से अगले दिन एकादशी को एक भयंकर हिंदू-मुस्लिम दंगा हुआ, जिसमें ईंट , पत्थर, लाठियों तथा बल्लमों के अतिरिक्त बंदूकों का भी खुलकर किया गया | हिंदुओं की संख्या अधिक होने पर भी उनके पास बंदूकें आदि कम ही थीं, किन्तु मुसलमानों की संख्या कम होने पर भी उनके पास लगभग सौ बंदूकें थी | इससे हिंदू लोग पराजित होकर भाग निकले | धौला गुजरी  युद्ध करने वाले हिंदुओं को जहा से लाकर जल पीला रही थी, उस स्थान पर भी कुछ युद्ध-रत युवक आकार छिप गए थे |

        उक्त गुजरी हिंदुओं को मैदान छोड़ते देख रोष में भर गई | उसने मकान की छत पर चढ़कर ऊपर से मुस्लिम बंदूकधारियों के सरदार के सिने को लक्ष्य करके एक ईंट इतने वेग से मारी----जो मुस्लिम  सरदार के सीने में लगी और उससे वह वहीँ धराशायी हो कर तत्काल मर गया | फलतः शेष मुस्लिम बंदूकची भी भाग निकले | इसपर धौला गुजरी ने छिपे हुए हिंदू युवकों को भागते हुयों का पीछा करने को ललकारा और स्वयं भी वहीँ पड़ा भला लेकर उनपर टूट पड़ी | फलतः एक और आक्रामक भी घायल होकर वहीँ गिर पड़ा | हिंदू युवकों में इस दृश्य ने सहस का संचार कर दिया और वह आक्रमण करने वालों पर टूट पड़े | आक्रमणकारी मुस्लिम भाग गये और ग्राम की रक्षा हो गयी | किन्तु धौला गुजरी के भी बाएँ कंधे के निचे एक गोली लगी, जिसका तत्काल उपचार कर उसे बचा लिया गया |

          भारत के १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र होने के पश्चात समस्त इलाके वालों तथा जिला कोंग्रेस कमेटी के अनुरोध पर सरदार पटेल अक्टूबर मॉस में पलवल होते हुए होडल पहुंचे | इस अवसर पर किये हुए एक विशेष समारोह में धौला गुजरी को रथ में बिठाकर सरदार के सम्मुख उपस्थित किया गया | सरदार ने उसकी वीरता की प्रशन्सा करते हुए निम्नलिखित भाषण दिया :---

           "जिस इलाके मे धौला गुजरी जैसी वीर महिलाएं रहती हो, वहां के पुरुष मुझ से सहायता मांगें, यह ठीक नहीं लगता | आप झगड़े न करें, बहादुरी से रहें मैं अपना कर्तव्य भली प्रकार समझता हूँ | जो मुसलमान मुस्लिम लीग को वोट देते रहे हैं और पकिस्तान जाना चाहते हैं वे जाएँ | जो यहाँ रहना चाहते हैं उनकी हम रक्षा करेंगे, किन्तु जो लोग गुण्डागिरी करते हैं उन्हें कुचल दिया जायेगा | यह न भूलें की सरकार के हाथ बड़े लम्बे हैं |"

             धौला गुजरी की सरकार द्वारा की हुयी प्रसंशा से प्रोत्साहित होकर पंजाब सरकार ने उसे उसकी वीरता के उपलक्ष में एक सहस्त्र रूपया पारितोषिक दिया |

रविवार, 20 मई 2012

राष्ट्रनिर्माता सरदार पटेल - २ : विवशता


हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र बाबु के निजी सचिव श्री वाल्मीकि चौधरी ने "राष्ट्रपति भवन की डायरी "नमक अपने ग्रन्थ में २६ फ़रवरी १९५० के विषय में लिखा है की :

       "आज सरदार वल्लभभाई पटेल की कोठी पर राष्ट्रपतिजी गाँधी स्मारक तिथि की एक सभा में भाग लेने गए | . . . सभा के पश्चात दोपहर का भोजन राष्ट्रपतिजी ने सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ उनकी कोठी नं. १ औरंगजेब रोड पर ही किया | सरदार वल्लभभाई के साथ राष्ट्रपति का बहुत प्रेम सम्बन्ध रहा है | सरदार हास्य प्रेमी  हैं |

       "सरदार बल्लभभाई से श्री जवाहरलालजी का मेल नहीं बैठ रहा है | सरदार दुखी रहते हैं | देशी रजवाड़ों का निब्ताराकर रहे हैं | बड़े महत्व के काम में लगे हुए हैं | काश्मीर जवाहरलाल पर छोड़ रखा है कहते थे कि 'सब जगह तो मेरा वश चल सकता है, पर जवाहरलाल कि ससुराल में मेरा वश  नहीं चलेगा | वह यह भी कहते थे कि  'शेख अब्दुल्ला वगैरह क्या राष्ट्रीय मुसलमान रहेगा ? इस देश में तो एक ही राष्ट्रीय मुसलमान है और वह है  जवाहरलाल |'

  इस तरह कि बहुत सी बातें कीं | वह यह भी कहते थे कि लाचार हैं, क्योंकि गांधीजी को वचन दे चुके हैं कि जवाहरलाल जैसा चाहेंगे वैसा ही उनके काम में सहयोग देते रहेंगे |"

                                                                        क्रमशः जारी.......................

हंस चुनेगा दाना-तिनका कौआ मोती खाएगा



अजीब इत्ते़फाक़ है. कामिनी जायसवाल ने इस पीआईएल को रजिस्ट्रार के पास जमा किया और अपने केबिन में लौट आईं, इतनी ही देर में यह पीआईएल मीडिया में लीक हो गई. उन्हें किसी ने बताया कि इसमें क्या है, यह मीडिया के लोगों को पता चल चुका है. जब इस पीआईएल की सुनवाई शुरु हुई तो जज ने पहला सवाल कामिनी जायसवाल से पूछा कि किसने लीक की. जबकि तब तक यह बात आम हो चुकी थी कि यह लीक सुप्रीम कोर्ट के पीआरओ के दफ्तर से हुई थी. इसे दो अ़खबारों को दिया गया था. कामिनी जायसवाल ने जज से यह भी कहा कि उन्हें जब इसका पता चला, तब उन्होंने शिकायत भी की थी, लेकिन जज ने कामिनी जायसवाल की बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया. इस लीक से पीआईएल दायर करने वाले लोगों को का़फी नुकसान उठाना पड़ा. लीक होने के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस ने इस पीआईएल के बारे में खबर छापी. दोनों ही अ़खबारों ने लिखा कि यह पीआईएल कम्युनल है. अजीब इत्ते़फाक़ यह भी है कि कोर्ट में सरकार के एटॉर्नी जनरल ने भी यही दलील दी कि वरिष्ठ और ज़िम्मेदार नागरिकों, पूर्व नौसेना अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की याचिका कम्युनल है. हालांकि यह याचिका पढ़कर लगता तो नहीं है, लेकिन अगर याचिकाकर्ता यह कहें कि पूर्व सेनाध्यक्ष जे जे सिंह ने उत्तराधिकारियों की सूची बनाने की साज़िश रची, जिसमें राजनीतिक नेता, पूर्व सेनाध्यक्ष और लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह शामिल हैं, तब सवाल यह उठता है कि साज़िश रचने वालों में कोई तमिल, कोई बंगाली, कोई राजस्थानी, कोई मणिपुरी भी हो सकता था, लेकिन ये सब एक ही बिरादरी के हैं तो याचिकाकर्ताओं की इसमें क्या ग़लती है और यह बात किस हिसाब से सांप्रदायिक हो जाती है.
           मज़ेदार बात यह है कि लगातार मीडिया में जनरल वी के सिंह के खिला़फ एक कैंपेन सा चल रहा है. इंडियन एक्सप्रेस ने तो हद कर दी थी. मित्रता निभाने के चक्कर में इस अ़खबार के संपादक ने भारतीय सेना के माथे पर ऐसा कलंक लगा दिया, जिसे हरगिज नहीं मिटाया जा सकता है. जब सभी ज़िम्मेदार लोगों ने इस रिपोर्ट को बकवास बताया, तब भी अ़खबार अपनी ज़िद पर अड़ा रहा. अगले दिन उसने यहां तक लिखा कि रक्षा मंत्री ने सेना के मूवमेंट की बात मानी, लेकिन वह रिपोर्ट पर उठाए गए सवाल पर चुप रहा. बाद में (5 अप्रैल को) उसने यहां तक लिखा कि सरकार सेना की टुकड़ियों के मूवमेंट पर स्टैंडिंग कमेटी को भरोसे में नहीं ले सकी, जबकि 30 अप्रैल को जब स्टैंडिंग कमेटी ऑन डिफेंस की रिपोर्ट आई तो उसमें शेखर गुप्ता की रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया. मा़फी मांगने के बजाय शेखर गुप्ता अपने अ़खबार का इस्तेमाल जनरल वी के सिंह के खिला़फ कैंपेन में करते रहे. कोर्ट के फैसले के बाद भी उनका हमला जारी है. टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक इंदर मल्होत्रा, जो आजकल द ट्रिब्यून में लिखते हैं और इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता ने इस मामले पर लेख लिखे. दोनों के लेखों को अगर देखा जाए तो पता चलता है कि दोनों ने एक ही बात लिख दी कि यह पीआईएल सिखों के खिला़फ है, यह एक कम्युनल पीआईएल है. इनके लेखों देखकर लगता है कि जैसे दोनों महान पत्रकारों ने आपस में बातचीत करने के बाद लिखा हो. यह भी हो सकता है कि इन्होंने खुद न लिखा हो, बल्कि किसी ने इन दोनों से लिखवाया हो. इस पूरे मामले को सांप्रदायिकता की तऱफ मोड़ने का उद्देश्य तो सा़फ है कि याचिकाकर्ताओं के खिला़फ ऐसा माहौल बना दिया जाए कि कोई मीडिया उनकी बात न छापे, न दिखाए और वे बैकफुट पर चले जाएं. इस तरह की ख़बरें आते ही कई सिख सैन्य अधिकारी नाराज़ हो गए. उन्होंने इन ख़बरों को सच मान लिया. कुछ लोगों ने याचिकाकर्ताओं को चिट्ठी लिखकर नाराज़गी व्यक्त की. दरअसल, इस याचिका में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के बारे में यह लिखा था कि उसने जनरल जे जे सिंह की नियुक्ति में सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की थी. साथ ही यह लिखा हुआ था कि इसका असर सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर नहीं हुआ. शेखर गुप्ता ने अपने लेख में लंगर के बारे में का़फी ज़िक्र किया. जो लोग सेना को जानते हैं, उन्हें यह भी पता है कि सेना में किचन यानी रसोई को लंगर कहा जाता है. याचिका में दिए गए इस शब्द का मतलब सिखों के लंगर से कतई नहीं था, इसका मतलब किचन टॉक है. देश के जाने-माने वरिष्ठ एवं ज़िम्मेदार लोगों ने बिना किसी स्वार्थ के एक मुद्दा उठाया था, ताकि हिंदुस्तान की सेना का सिर गर्व से ऊंचा हो सके. उन लोगों ने सेना और सरकार के बीच के रिश्ते को सुधारने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि यह कलयुग है. इस युग में सच को झूठ और झूठ को सच बनाने वाले लोगों की कद्र होती है. जिन लोगों ने देश को सुधारने की कोशिश की, वे हार गए और जिन्होंने एक याचिका को सांप्रदायिक बताया, वे जीत गए. लगता है, देश को सुधारने के लिए सतयुग का इंतज़ार करना पड़ेगा.


साभार:- http://www.chauthiduniya.com/2012/05/hans-choose-dana-straw-eat-crow-beads.html

मंगलवार, 15 मई 2012

अविश्मरणीय राष्ट्रनिर्माता की स्मृति





"यह एक बहुत बड़ी कहानी है, जिसे हम सब जानते हैं और सारा देश जनता है | इसे इतिहास के अनेक पृष्ठों में लिखा जायेगा, जहाँ उन्हें नविन भारत का निर्माता तथा नवीणकर्ता बतला कार उनके विषय में अन्य भी अनेक बातें लिखी जायेंगी | स्वातंत्र्य-युद्ध की हमारी सेनाओं के एक महान सेनापति के रूप उनको हममें से अनेक व्यक्ति संभवतः सदा स्मरण करते रहेंगे | वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने संकटकाल में तथा विजय-वेला में सदा ही ठोस और उचित परामर्श दिया | वह एक ऐसे मित्र, सहयोगी तथा साथी थे, जिनके ऊपर निर्विवाद रूप से शक्ति की ऐसी मीनार के रूप में भरोसा किया जा सकता था, जिसने संकट के दिनों में हमारे द्विविधा में पड़े हुए हृदयों को पुनः शक्ति प्रदान की | " 
                                                                                                                                                                        ----जवाहरलाल नेहरु (सरदार के निधनोपरांत)

मृत्युञ्जयी सरदार पटेल



"आज सरदार पटेल का जन्म-दिवस है---अविस्मरणीय राष्ट्र-निर्माता का प्रेरक स्मरण दिवस ! सरदार मृत्युंजय साबित हुए हैं | जीवन में वह जितने याद नहीं आए, उससे कई गुना अधिक वह आज याद आ रहे हैं| राष्ट्रविपत्ति में लोगों की आँखों में अनायास ही सरदार की वज्रमुर्ती चित्रित हो जाती है | द्रोह और शैथिल्य की स्थितियों में वज्रबाहु सरदार आँखों की श्रद्धा में झूलने लगते हैं | संकट-काल में जिसकी याद आए , जिसकी अनुपस्थिति मन में मायूसी उत्पन्न करे, उसे मृत्युंजय न कहें तो क्या कहें ?

                    सरदार पटेल ने भारत की भाग्यालिपि अपनी लौह-कर्मठता में लिखी है | वह लिपि देश का अखण्ड-अनश्वर भूगोल बन कर उनके नेत्रित्वकौशल  का जयजयकार करती है | गांधीजी ने राष्ट्र-जागरण का जो शंख फूंका था, सरदार ने उस घोष को अपने जीवन में प्रवृति-रूप देकर राष्ट्र की विविध -मुखी शक्तियों को एक प्रबल प्रवाह में संगठित किया था | इस प्रवाह में इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य ही नहीं बह गया , देश की अकर्मण्यता और हीनताएं भी बह गई | शक्तिस्त्रोत से निकले शक्ति-प्रवाह राष्ट्र की रंगों में प्रवाहित हो कर निर्जीव-मूल्यों को फिर से लहलहाने लगे | मुक्ति के विचार-आकाश  के साथ  सरदार ने अपनी मातृभूमि को ऐसे नर-रत्न भी गढ़ कर दिए, जिन्होंने अपने प्रशासन-कौशल  से संसार को चकित कर दिया | सरदार स्वाभाव से सेनापति तो थे ही, वे अपने उसी स्वाभाव में सेनापति निर्माता भी थे | महादेव भाई उन्हें मजाक में अक्सर "नेताओं की फसल बोने वाला किसान" कहा करते थे |

                    जीवन काल में कमायी महत्ता और कीर्ति, वास्तव में परम काम्य है, किन्तु अक्षय अमर महत्ता तो वही है जो मृत्यु के बाद भी फलती फूलती रहे | पुरुषार्थियों को ही ऐसी महत्ता और कीर्ति नसीब होती है ----ऐसे पुरुषार्थियों को, जिन्होंने काल के वज्रदान्तों को अपने प्रचंड पराक्रम से तोड़ा है | सरदार पटेल इसी कोटि के पुरुष-पुंगव थे-----उनकी सिर से पैर तक की सारी देह यष्टि शौर्य के स्वर्ण से बनी थी | अग्नि परीक्षाओं में यह स्वर्ण और भी निकलता गया | कीर्ति के लिये मृत्यु सब से भयानक एवं कठोर अग्नि परीक्षा होती है | सरदार इस परीक्षा में भी खड़े उतरे हैं; मृत्यु के बाद वह अपने 'स्वर्ण ' में और भी तेजस्वी होते जा रहे हैं | आज देश उन्ही अद्वितीय 'सरदार' को श्रद्धा-भक्ति के साथ शीश नवाता है |"


साभार-----दैनिक "हिन्दुस्तान"
अक्टूबर
दिनांक-----31 अक्टूबर 1963