मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

हिलाल या हलाल

यरवदा के जेल में महादेव भाई देसाई से एक मार्च १९३३ को तेल मलवाते समय बापू बोले, "आज चन्द्रमा सुन्दर दीखता है | इसे तो हिलाल हि कहते होंगे न ?" इस पर महादेव बोले, "हिलाल तो दोयज के चन्द्रमा का नाम है न ?" हिलाले ईद" ( ईद का चंद ) कहा जाता है |"  इस पर बापू ने पूछा, "ईद के हिलाल के सामान तीज का हिलाल नहीं कह सकते ?"

        इस पर बल्लभभाई बोले "हलाल का मतलब तो यही नहीं है न, कि एक हि झटके में  दो कर डालें ? और सिक्खों को झटके का गोश्त चाहिए न ?"

         बापू और महादेव भाई खिलखिला कर हंस पड़े |


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         एक बार जिन्ना ने अपने व्याख्यान में कहा कि "गाँधी ने क्या किया ?"

         इसके सम्बन्ध में सरदार ने उत्तर दिया "निश्चय से गांधीजी ने कुछ नहीं किया, किन्तु जिना को कुरान पढ़वा दिया |"

          चौरी चौरा काण्ड के बाद जब बारडोली में सत्याग्रह आरम्भ न करने का निश्चय किया गया तो विठ्ठल भाई बोले

          "बारडोली  थरमा पोली  |"

           इस पर सरदार बोले थर अर्थात् झाड़ कि जड़ पोली हो उसका निश्चय उसमें मसूल बजा कर दिया जावे |

           बारदोली सत्याग्रह के दिनों में कुर्की वालों से बचने के लिये पशुओं को बहुत समय तक माकन में बंद रखा गया, जिससे उनका रंग हल्का कला पद गया |

एक बार सरदार ने अपने व्याख्यान में आये हुए कुछ अंग्रेजों को सुना कर कहा |

            "हमारे यहाँ तो भैंस भी मैडम बन गईं |"

मृत्युञ्जयी सरदार पटेल

राष्ट्रनिर्माता पटेल

"आज सरदार पटेल का जन्म-दिवस है---अविस्मरणीय राष्ट्र-निर्माता का प्रेरक स्मरण दिवस ! सरदार मृत्युंजय साबित हुए हैं | जीवन में वह जितने याद नहीं आए, उससे कई गुना अधिक वह आज याद आ रहे हैं| राष्ट्रविपत्ति में लोगों की आँखों में अनायास ही सरदार की वज्रमुर्ती चित्रित हो जाती है | द्रोह और शैथिल्य की स्थितियों में वज्रबाहु सरदार आँखों की श्रद्धा में झूलने लगते हैं | संकट-काल में जिसकी याद आए , जिसकी अनुपस्थिति मन में मायूसी उत्पन्न करे, उसे मृत्युंजय न कहें तो क्या कहें ?

                    सरदार पटेल ने भारत की भाग्यालिपि अपनी लौह-कर्मठता में लिखी है | वह लिपि देश का अखण्ड-अनश्वर भूगोल बन कर उनके नेत्रित्वकौशल  का जयजयकार करती है | गांधीजी ने राष्ट्र-जागरण का जो शंख फूंका था, सरदार ने उस घोष को अपने जीवन में प्रवृति-रूप देकर राष्ट्र की विविध -मुखी शक्तियों को एक प्रबल प्रवाह में संगठित किया था | इस प्रवाह में इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य ही नहीं बह गया , देश की अकर्मण्यता और हीनताएं भी बह गई | शक्तिस्त्रोत से निकले शक्ति-प्रवाह राष्ट्र की रंगों में प्रवाहित हो कर निर्जीव-मूल्यों को फिर से लहलहाने लगे | मुक्ति के विचार-आकाश  के साथ  सरदार ने अपनी मातृभूमि को ऐसे नर-रत्न भी गढ़ कर दिए, जिन्होंने अपने प्रशासन-कौशल  से संसार को चकित कर दिया | सरदार स्वाभाव से सेनापति तो थे ही, वे अपने उसी स्वाभाव में सेनापति निर्माता भी थे | महादेव भाई उन्हें मजाक में अक्सर "नेताओं की फसल बोने वाला किसान" कहा करते थे |

                    जीवन काल में कमायी महत्ता और कीर्ति, वास्तव में परम काम्य है, किन्तु अक्षय अमर महत्ता तो वही है जो मृत्यु के बाद भी फलती फूलती रहे | पुरुषार्थियों को ही ऐसी महत्ता और कीर्ति नसीब होती है ----ऐसे पुरुषार्थियों को, जिन्होंने काल के वज्रदान्तों को अपने प्रचंड पराक्रम से तोड़ा है | सरदार पटेल इसी कोटि के पुरुष-पुंगव थे-----उनकी सिर से पैर तक की सारी देह यष्टि शौर्य के स्वर्ण से बनी थी | अग्नि परीक्षाओं में यह स्वर्ण और भी निकलता गया | कीर्ति के लिये मृत्यु सब से भयानक एवं कठोर अग्नि परीक्षा होती है | सरदार इस परीक्षा में भी खड़े उतरे हैं; मृत्यु के बाद वह अपने 'स्वर्ण ' में और भी तेजस्वी होते जा रहे हैं | आज देश उन्ही अद्वितीय 'सरदार' को श्रद्धा-भक्ति के साथ शीश नवाता है |"

साभार-----दैनिक "हिन्दुस्तान"
दिनांक-----31 अक्टूबर 1963

सरदार पटेल गाथा

सरदार पटेल विभिन्न मुद्रा में
बच्चों भारत में जन्मा था, ऐसा पुरुष महान 
लोग उसे कहते वह है, लोहे का इंसान 

वल्लभ भाई बचपन से ही, थे निर्भय स्वाधीन
कठिन समय में भी वे होते, कभी न थे नत दिन

बाधाओं से भीड़ जाते थे, बन कर अटल पहाड़
सदा किया करते थे निर्भय, खतरों से खिलवाड़

लगी हुई थी तब भारत में, मुक्ति समर की आग
गांधीजी का आवाहन सुन, देश उठा था जाग

हुए प्रभावित गांधीजी से, बढे साथ निर्द्वंद
विश्वासी थे बापू के, बढते साथ अमन्द

सचमुच था सौभाग्य देश का, था अद्भुत संयोग
वल्लभ भाई-जैसे का था गाँधी को सहयोग

छोड़ वकालत फूंका पथ-पथ, असहयोग का मन्त्र
अंग्रेजों के सफल ना होने, देते थे षड्यंत्र

रक्खेगा इतिहास बारडोली, सत्याग्रह याद 
नौकरशाही के जुल्मों की, रही न थी तादाद

इस सत्याग्रह ने पाया था, देश व्यापी विस्तार
बापू ने था उन्हें पुकारा, कह सब का सरदार

मुक्त देश था नया जोश था मिला सुभ्र वरदान
वल्लभ भाई ने भारत का, किया नवल निर्माण

किया एक ने भारत का भू-अखिल कीर्ति विस्तार
एक राष्ट्र का संयोजक था, शिल्पी कुशल अपार

सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु निश्चय करते हुए

बिखरे राज्यों को मोती का, गूँथ मनोहर हार
पूर्ण किया सदियों का सपना, धन्य-धन्य सरदार
                                 
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