बुधवार, 30 मई 2012

सरदार के ऐतिहासिक कार्य :- चीनी आक्रमण की भविष्यवाणी

उनका अंतिम सार्वजनिक भाषण अपने ढंग का अनूठा था यह भाषण केन्द्रीय आर्य सभा दिल्ली के तत्वावधान में ऋषि दयानंद के ६७वें निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में ९ नवम्बर १९५० को दिया गया था | सरदार का स्वभाव अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर भाषण देने का नहीं था | किन्तु अपने इस भाषण में उन्होंने तिब्बत तथा नेपाल के सम्बन्ध में चीन की प्रसरवादी नीति की आलोचना करते हुए यह सम्भावना प्रकट की थी कि चीन का आक्रमण बारात पर भी हो सकता है |


         सरदार पटेल ने अपने भाषण में कहा कि "आज तिब्बत तथा नेपाल में जो कुछ हो रहा है, उसके खतरे का मुकाबला तभी किया जा सकता है जब भारतीय जनता दज्गत भावना से ऊपर उठे | नवीन प्राप्त की हुई स्वतंत्रता की रक्षा इसी प्रकार की जा सकती है | महात्मा गाँधी तथा दयानंद के दिखलाए हुए मार्ग का अनुसरण करके ही आज की कठिन स्थिति का मुकलाबा किया जा सकता है |" उन्होंने इस बात पर बल दिया "नेपाल के आन्तरिक सरदारों ने भारत की उत्तरी सीमा पर बाह्य खतरे की सम्भावना को बढ़ाया है | अतएव भारतीयों को किसी भी क्षेत्र से आने वाली खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए |"
          
        सरदार पटेल ने तिब्बत में शांति के हस्तक्षेप की आलोचना करते हुए कहा कि "प्राचीन काल से सदा ही शांति कि उपासना करने वाले तिब्बतियों के विरुद्ध शस्त्र का प्रयोग करना अनुचित है | तिब्बत के जैसा शांति का उपासक संसार का कोई देश नहीं है |' उन्होंने यह भी कहा "चीन सरकार ने भारत के परामर्श को नही मन कि वह तिब्बत के मामले को शांतिपूर्वक तय करे | उसने तिब्बत में अपनी सेनाएं धंसा दीं और उसका कारण यह बतलाया कि वह तिब्बत में चीन विरोधी विदेशी षड्यंत्रों को समाप्त करेंगी | किन्तु यह भय निराधार है | तिब्बत में किसी बाह्य शक्ति की रूचि नहीं है  |"

          सरदार पटेल ने अपने भाषण में आगे कहा "चीन के इस कार्य का क्या परिणाम होगा, कोई इसे नहीं बतला नहीं सकता | किन्तु बल तथा शक्ति संपन्न राष्ट्र किसी मामले पर शांतिपूर्वक विचार नहीं करते |"