रविवार, 20 मई 2012

राष्ट्रनिर्माता सरदार पटेल - २ : विवशता


हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र बाबु के निजी सचिव श्री वाल्मीकि चौधरी ने "राष्ट्रपति भवन की डायरी "नमक अपने ग्रन्थ में २६ फ़रवरी १९५० के विषय में लिखा है की :

       "आज सरदार वल्लभभाई पटेल की कोठी पर राष्ट्रपतिजी गाँधी स्मारक तिथि की एक सभा में भाग लेने गए | . . . सभा के पश्चात दोपहर का भोजन राष्ट्रपतिजी ने सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ उनकी कोठी नं. १ औरंगजेब रोड पर ही किया | सरदार वल्लभभाई के साथ राष्ट्रपति का बहुत प्रेम सम्बन्ध रहा है | सरदार हास्य प्रेमी  हैं |

       "सरदार बल्लभभाई से श्री जवाहरलालजी का मेल नहीं बैठ रहा है | सरदार दुखी रहते हैं | देशी रजवाड़ों का निब्ताराकर रहे हैं | बड़े महत्व के काम में लगे हुए हैं | काश्मीर जवाहरलाल पर छोड़ रखा है कहते थे कि 'सब जगह तो मेरा वश चल सकता है, पर जवाहरलाल कि ससुराल में मेरा वश  नहीं चलेगा | वह यह भी कहते थे कि  'शेख अब्दुल्ला वगैरह क्या राष्ट्रीय मुसलमान रहेगा ? इस देश में तो एक ही राष्ट्रीय मुसलमान है और वह है  जवाहरलाल |'

  इस तरह कि बहुत सी बातें कीं | वह यह भी कहते थे कि लाचार हैं, क्योंकि गांधीजी को वचन दे चुके हैं कि जवाहरलाल जैसा चाहेंगे वैसा ही उनके काम में सहयोग देते रहेंगे |"

                                                                        क्रमशः जारी.......................

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