श्री
सी. एम.
श्रीनिवासन
ने सरदार पटेल के जीवन चरित्र
सम्बन्धी अपने ग्रन्थ में
लिखा है की---
“१९४८
में सरदार पटेल एक भारतीय
युद्धपोत द्वारा बम्बई बंदरगाह
के बहिर यात्रा कर रहे थे |
जब युद्धपोत
गोआ के निकट आया तो उन्होंने
उसके
कमाण्डिंग अफसर से कहा की
वह युद्धपोत को गोआ के समीप
ले जावे, जिससे वह उसे देख सकें | कमाण्डिंग अफसर ने सरदार को तटवर्ती सामुद्रिक सीमा के नियम स्मरण कराएँ तो सरदार मुस्करा कर बोले--
"कोई बात नहीं, बढे चलो, तनिक देखें तो सही |" कमाण्डिंग अफसर विवश हो गया और वह सरदार को प्रसन्न करने के लिए युद्धपोत को पुर्तगाल की सामुद्रिक सीमा में एक मील तक ले गया | तब सरदार पटेल ने उस अफसर से पूछा---
"इस युद्धपोत पर तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं ?"
"८००" कप्तान ने उत्तर दिया |
"क्या वह गोवा पर अधिकार करने के लिये पर्याप्त है ?" सरदार ने पूछा |
"मैं ऐसा ही समझता हूँ |" कप्तान ने निर्मिमेष दृष्टि से देखते हुए कहा |
"अच्छा, चलो | जब तक हम यहाँ हैं गोआ पर अधिकार कर लो |" सरदार ने कहा | युद्धपोत के कमाण्डिंग अफसर ने उनपर दृष्टि जमाये हुए इस बात को दोहराने को कहा तो सरदार ने बड़ी गंभीरता से अपनी बात को दोहरा दिया |
"श्रीमान ! इस विषय में आपको मुझे लिखित आज्ञा देनी पड़ेगी, जिससे उसे रिकार्ड में रखा जा सके |" कप्तान बोला |
सरदार ने कुछ सोचकर उत्तर दिया "बाद में विचारने पर मई सोचता हूँ की हम वापिस चलें | तुम जानते हो पीछे क्या होगा ? जवाहरलाल इस पर आपत्ति करेगा |"
वास्तव में ऐसे मामले पर वह अपनी इच्छानुसार कार्य कर जाते | गोआ को तो वह बहुत पहले भारतीय संघ में सम्मिलित कर लेते, यदि उनको यह विश्वास होता की उनके कार्य का समर्थन प्रधानमंत्री करेंगे |
सरदार कहा करते थे "कार्य निश्चय से पूजन है, किन्तु हंसी जीवन है |" उनका जीवन भर कार्य इसी सिद्धान्त पर आधारित था |
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